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परमात्मदर्शन.
(- ११७ )
बात याद करे नहीं. सारांश के अतीतकाल संबंधी शोक करे नहीं. . तेम भविष्यकाल संबंधी व अने पर आश्रयी विकल्प संकल्प करी शोक करे नहीं. विकल्प संकल्प रहीत आत्मानी स्वउपयोगे अब- स्थीति - तेने सामायिक कहेछे कोनी पेठे ते दर्शावेछे, वायु रहीत - दीवानी ज्योतिनी पेठे दीवाने वायु लागतां ज्योति चंचळ पायछे, तेम आत्मामां पण विकल्प संकल्प थतां आत्मा चंचल थइ परख. भावमां पडेछे. माटे एकाग्रचित्ते स्थिरपणे एक आत्मस्वरूपमां उपयोग सखवो ते सामायिक जाणवुं मनमां कोइ पण वस्तु चिंतaat नहीं, मननी साये कोइ पण वस्तुनो संग थाय नहीं. अर्थात् मन - अन्य वस्तुना संगथी रहीत होय, कोइपण वस्तुनो आकार मनमां finest नहीं, मनमां कोइ पण वस्तुनो आभास रहे नहीं. कोइपण वस्तुना आश्रय रहीत मन निराश्रित होय, मन पुण्य अने - पापना व्यापार रहीत होय, मनने आत्म स्वरूपमां लीन करी देवं, - जेम भरउंघमा कोइ पण वस्तुना व्यापार रहीत बाह्यथी देखतां जशायछे, तेम भरडंघनी पेठे पस्वस्तुने भूली अखंड निर्मल आत्म स्वरूप मां आत्म स्वभावे जागनुं, अने परस्वभावनी चितवना करवी नहीं अने तेने सामायिक कछे.
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गतकाल, गतअवस्था, गतवस्तु आदिने विषे मनमां शोक थाय नहीं, अने आवतो काल, आवनार भावीकाले वस्तुना इष्ट संयोग तेनो मनमा हर्ष थाय नहीं, अने शत्रु तथा मित्र उपर समचित होय एवी जे आत्मानी अवस्था तेने सामायिक कहेछे. आ उपरना aण लोको कथाकोष ग्रंथमां काछे, जे भव्यात्माओने क्षमावडे तथा समपणे सामाय वर्तेछे तेमने क्रोधादिक शत्रुओ पराभव .करी शकता नथी.
भव्यात्माए मुक्तिपदनी चाहना राखतां अदेखा इनो नाश क