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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्मधर्म महत्ता. ananmannanorammamarinaamannamrunmannaanaamanna... . पुण्य पाप रहित अने तस्वथी जोता निर्विकल्प एवो शायत आत्मा ध्यान करवा योग्यछे. भव्योत्माओए तेनुं ध्यान करवू एवी भुद्धनयनी स्थिति जाणवी. ए ध्यानथी.घातिकर्मनो पण सहजमा क्षय थायछे. ___ आत्मध्यानीने . क्रोधादिक शत्रुओ उपद्रव : करी शकता नथी, अदेखाइ पण यती नथी. आ स्थळे क्रोधादिक वर्णन करेछे. क्रोधादिकनुं स्वरूप. आत्माना गुणोनो घातक क्रोधरूप चंडालछे, क्रोधरूपि अमि इदयने बालेछे. तथा शरीरने तपावेछे. वळी क्रोधथी चितनी निमलता नाश पामेछे अने मन शान्त बहु वखते थायछे. कोइ महास्माने कोइ शिष्ये प्रश्न कर्यु के हे पूज्य, हुं क्रोधथी क्यारे मुक्त थाउं ? त्यारे प्रत्युत्तरमा जणाव्यु के समताने आदरे त्यारे. क्रोधरूप अमि धर्मवक्षने बाळी भस्म करेछे, मुमुक्षुए धैर्य धारण करी उपजता क्रोधने सहनशीलताथी जीतवो. जे मनुष्यना ह्रदयमां क्रोधरूप. अग्नि रहेछे ते अपवित्र जाणवो. मनुष्य ते गंगाना जलमा स्नान करे तो पण क्रोधदोष गया विना पवित्र थतो नथी. मनुष्य ज्यारे अन्यना उपर क्रोधायमान थायछे त्यारे कर्म क्रोध करनारना उपर क्रोधायमान थायछे, क्रोधरूप चंडाल छिद्र जोइने ह्रदयमा प्रवेश करेछे, कोइ वखत तो तेनुं एटलं जोर थायछे के ते क्रोधना उदये मनुष्य पणा जीवोने मारी नांखेछे.. क्रोध बुद्धिनो शत्रुछे. समतासागरमा क्रोध वडवानल समानछे, क्रोधरूपी अनि हृदयमा प्रगट थायछे त्यारे तेनो धूमाडो शरीरमा प्रसरेछे. क्रोधन कारण परस्वभाव रमण जाणवू. परवस्तुमाथी मारापणानी बुद्धि टळी आ-. त्मस्वरूपमा जेनुं मन लीन थयुंछे तेवा महात्माओना हृदयमा क्रोधरूप अभिवास करतो नथी. कारण के तेमना इदयमा समाप For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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