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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मनः श्लोक. शरीररूपलावण्य, वपछत्रध्वजादिभिः । वर्णितैर्वीतरागस्य, वास्तवीनोपवर्णना.॥ पुण्यपापरहित परमात्माना स्वरूपर्नु चितवन करतेने ध्यान कहेवु अने स्तुति तथा भक्ति पण तेज जाणवी. पण शरीरना वर्ण लावण्य-वम, छत्र ध्वजाओथी परमात्माओने करी परमात्माने खाणवा एवी जे स्तुति ते वस्तुतः वास्तविक स्तुति मथी. व्यवहार स्तुतिः सेयं वीतरागात्मवर्तिनां । ज्ञानादीनां गुणानां तु, वर्णना निश्चयस्तुतिः ॥ पुरादिवर्णनात् राज, स्तुतिः स्यादुपचारतः। तत्वतः शौर्यगांभीर्य धैर्यादि गुणवर्णनात् ॥ श्री तीर्थकरना शरीरादिकनुं वर्णन कर, एवी जे स्तुति ते व्यवहारे जाणवी. अर्थात् ते व्यवहार स्तुति जाणवी. पण वीतराग परमात्माना ज्ञानादिक गुण प्रशंसवा अने ते गुणो पोताना आत्मामां सत्ताए रखाछे एम जाणी तेनुं ध्यान करवू. तेज खरी स्तुति के परमात्म स्वरूप हुँ छु, एम सतत दृढ निश्रयथी चिंतवq ते निश्चय स्तुति जाणवी. जेम देश नगरादिकना वर्णनथी राजने वखाणेलो ते उपचारे स्तुति जाणवी अने राजानुं बल गांभीर्य धैर्यादिक गुणोनुं वर्गन ते निश्रय स्तुति जाणवी. श्लोक. पुण्य पाप विनिर्मुक्तं तत्वतस्त्वविकल्पक । नित्यं ब्रह्म सदा ध्येयमेषा शुद्धनयस्थितिः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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