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परमात्मदर्शन.
थाय ? तथा एक नुध्ये-कार करी लाख मनुष्य मार्ने अने एक मनुष्ये मनमां चिंतवना करी लाख मनुष्य मायाँ
तेषां विशेश दोष कोने लागे ? उत्तर-कायाए करी विष भक्षकने विशेष हानि याय कारण के
ते मनोयोगथी चिंतनपूर्वक विष भक्षण करेछे, अने तेथी ते मृत्यु पामेछे. मनोयोगयी तेटली हानि थती नथी माटे प्रायः योडो दोष जाणवो. कायाए लक्ष मनुष्य मारनारनी साथे मनोयोग भळेलोछे, तेथी विशेष दोष लागे तथा फक्त मनमा चितवनाथी लक्ष मनुष्य मारनारने तेना करतां थोडोदोष लागे.
प्रसनचंद्र राजर्षिए मनमा युद्ध करवाथी घणां कर्म उपाया तेथी कर्मबंधा पननी मुख्यता जाणवी, मननायोगे अन्यमति थायछे, मनमा विकरा संकल्प थाय नहीं तेने माटे ध्याननी अ. गत्यता छ, घणां कर्म ध्यान करवाथी नष्ट थाय छे. श्री यशोविजयजी उपाध्यायनी कहे छे के
श्लोक यत्र गच्छति परं परिपाकं, पाकशासनपदं तृणकल्पं ॥ स्वप्रकाशसुखबोधमयं तद्,ध्यानमेव भव नाशि भजध्वं ।
भावार्थ-ज्यां ध्याननी परिपक्वता थएछत मुनिराज इन्द्रनी पदवीने पण तृणखला बरोबर जाणे, गगे, मारे पोताना आत्माना स्वरूपन प्रकाशक एवा ध्य नथी दुःखनी भ्र न्ति टळे छे, अनुभषयी भासे छेके-ध्यानविना आत्मिकसुखनो अनुभव थतो नथी, केवल सुखनुं निधान छ, तथा ध्यानथी आत्मानुं शुद्ध ज्ञान प्रगटे, माटे हे भव्यात्माओ! मुनिवरो! तमोए बाह्य उपाधिने त्यागीछे तो रागद्वेषमोहादिक अंतर उपाधियी भरपूर एवो जे चार
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