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भारमशान महत्ता.
तर्क नरक गति दीये, जेने नाहे निज भान; शब्दशास्त्रथी भिन्नछे, आतमपद गुणवान्. ११५ कथा पुराणी बहु करे, जन मन रंजे भाट, वाद वाघरी घेरछे, धर्म विना सहु वात. ११६ क्रियाकांड नवि मुक्ति दे, जो नहि आतमभान, आत्मोपयोगी साधुने, धर्मक्रिया गुणखाण. ११७
भावार्थ-चतुर्गति संबंधी चतुरशिति लक्ष जीवयोनिमां आ प्रत्यक्ष शरीरनिष्ठनीवे जन्म मरण करी अनंत दुःख पाम्यां.
पुद्गल ममता वा अरूचिथी जीवनी परिणति रागद्वेषमय थइ जायछे, रूचि अरूचि पण पुद्गलना संबंधेछे, पुद्गल संबंधे शोक थायछे, देशधनादिक पुद्गलनी लालसाए दुनियाना जीवो सहस्रशः जीना प्रागनी आहुति युद्धानिमां होमे छे. रूशिया, जापान, विगेरे युद्ध करेछे ते पग पुद्गलनी लालसाथी जाणवी. महमद गीजनीवत् नृपो पुद्गल लालसामां रक्त बनी शोफा पुरुषवत् स्वमहत्वनी भ्रमणामां भूली तत्व विवेचन विवेकशून्य अंत:करणवाळाओ अजागल स्तनवत् स्वआयुष्यनी निष्फलता करेछे.
पुदगल द्रव्य आत्मगुग विरोधीछे, तेनी मित्रता करतां स्व. कीय गुणनी हानि थया विना रहेती नथी, पुद्गलथी पोताने भिन्न नहीं माननार अज्ञानी मूढात्मा रणना रोझ समान ज्ञानशून्य जाणवो.
"आहार, पाणी आदि पुद्गलने अनंता जीवोए भोगव्युं तेज पुद्गलने आ जीव भक्षण करेछे, अनंता सिद्ध भगवंतोए संसारापस्थामा अनंता भव करी पुद्गल स्कंधोने खाधा, पीधा, पळी
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