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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधिकार हैं, वोतो राजाके विना किसीको शोभित नहीं होते, इत्यादि वात शोचकर प्राचीन ऋषि महात्मा लोकोंने बडे, २ अध्यात्म शास्त्र रचकर सांसारिक जनोंपर वो कृपा करी है, कि जिसका वस्वान सरस्वती देवी भी नहीं करसकती जैसा आसुप्तरामृतेःकालं, नयेदध्यात्मचिन्तया। ईपन्नावसरंदद्यात्, कामादीनाम्मनागाप ॥ जव तक निद्रावस्था नहो, तथा मृत्यु न आवे तब तक अध्यात्म चिन्तासेही कालको वितावे, काम, क्रोध, लोभ, मोहको थोडासाभी मोका न दे जिससे आकर मतावें. वो आध्यात्म चिन्ता कितनी कठिन है. इस वातको सबही बुद्धिमान् जानते है, उस अध्यात्म शास्त्रकी रचना कितनी प्रकारकी भाषामे कितनेही संज्ञा शब्दोंमें यद्यपि रचित है परंतु कितनेक तो बिचारे मंदबुद्धियोंके समजमें नहीं आती. कितनेक बुध्धिमान्भी हैं तोभी अन्य भाषा होनेसे पूरा तत्व नहीं मिलता. अथवा कितनेक छंद प्रबंध के तथा गान विद्याके रसिकहैं. उनको गद्यभाषा नहीं रुचती इसलिये योग मार्ग क्रिया परायण श्री जैनश्वेताम्बर मुनिराजश्री बुध्धिसागरजीने बहुत आन्दमे आकर मनोहर २ भजन छंदमें बनाकर तैयार कियेहैं. जिनका स्वाद विशिष्ट साधारण सब लोकोंको मिले. इन सबका सार यह हैकी मनुष्योंकी अध्यात्ममे रुचि हो और काम क्रोधादि अन्तःशत्रुओंका नाश हो और अध्यात्म पुष्टिके लिये वैराग्यका तथा भक्तिरसकाभी सार पूर्ण रीतिसे दिखाया है. कारणकि बिना वैराग्यके वर्णन सांसारा ऽऽसक्ति दूर नहीं होती. और भक्ति के विना चितके आवरण विशेष दूर नहीं होते. इसलिये वैराग्य तथा इष्टदेवमें अनुराग अध्यात्म चिन्ताका परमोपाय है. येसम्पूर्ण भजन आयंतसे मेने प्राय सब सुने है. इनमे जैन शा For Private And Personal Use Only
SR No.008626
Book TitlePadsangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherLallubhai Raiji Zaveri Ahmedabad
Publication Year1907
Total Pages213
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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