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॥ अर्थ श्री सद्गुरु स्तुतिः ६५ ॥ नमो नमो श्री सद्गुरु, समकित दायक देव, प्रणमुं पद पंकज मुदा, सेवन करूं सदैव. १ गुरु अक्ष गंगाजले, निर्मल आतम थाय; गुरुकरुणादृष्टिश्रकी, रत्नत्रयी प्रगटाय. नक्ति करो गुरुनी घणी, गुरु नक्ति आधीन; शक्ति जगे गुरु नक्तिथी, दीन पण होवे जिन. ३ गुरु सेवामां तीर्थ सहु, सहेजे सुज्ञ समाय; निमित्त कारण तीर्थयी, अधिक तस मदिमाय. ४ नपादान के तमा, तीर्थ सहु शिरदार; तस शुहि अर्थे गुरु, तीर्थ तीर्थ निरधार. समयाज्ञा विधिश्री सदा,गुरु आराधो नव्य; आत्मज्ञान प्राप्ति की, एहज ने कर्तव्य. नदयानदय जणावता, हेयादेय विचार; सत्यासत्य जणावता, धर्माधर्माचार. पाप पुण्य परखावता, जीवाजीव स्वरूप समुपदेशे सद्गुरु, टाळे नव जय धूप, मिथ्यातमः निवारवा, सद्गुरु सूर्य समान; राग रोगने टाळवा, धन्वंतरि समजाण. गुरु गुरु जग सहु कहे, गुरु कोने कदेवाय। ज्यां त्यां गुरुनी बुड़ियी, पामर जन नटकाय. १० सद्गुरु संगत योगश्री, शुक तत्व परखाया.
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