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क्यां प्रनुनी निःसंगता, क्या प्रनुनो दृढ रंग; त्रिशलानंदन जगधणी, सत्यज तारो संग. १७ रागारि जयश्री अयो, रत्नत्रयो गुणधामः रागारि वशमां पमयो, सर्व दोषनुं गमः १७ तुज घटमां रुचि सहु, प्रगटो आविर्भाव; तिरो नाव मुजमां सहि, पाभ्यो हजी न दाव.१७ निजपद नोगी तुं सहि, करु हुं पुद्गल नोग; रोगी शोगी हुं सहि, घटे न तुजमा जोग, २० अजरामर निर्मल तुंहि, शाश्वत सुख नंमार, अदनुत शक्ति ताहरी, को न पामे पार. २१ शरण शरण तारु ग्रहु, राखी निज नपयोग; शुइ स्वरूपाकारना, ध्याने शिव सुख नोग. २२ प्रातम व्यक्ति समारवा, तुज सेवा सुखकार, पातमसो परमातमा, घटमां निश्चय धार. २३ जाग जाग अब तमा, प्रन्नु पद पंकज सेव.. लिम समोवम तुं सहि, जागे तो तुं देव. २४ स्तुति पच्चिशी गाई में, हृदय धरी विवेक; बुद्धिसागर आत्मना, धमें साची टेक. २५
इत्येवं शांतिः शांतिः शांतिः
वळाद.
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