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४५ मन चन्चलता त्यां हुवे रे, उलटो वाधे क्लेश. ज. १ खत्ता धन वृद्धि की रे, होय नपाधि जोर,. चित्त स्थिरता नहि नजे रे, प्रगटे दीलमा तोर. ज. २ उनीयानी खटपट थकी रे, खटपटीयु मन थाय; मन लटके बाह्यमां तो, बहिरामत पद पाय. ज. ३ लेश विकल्प न नपजे रे, अन्तर वर्ते ध्यान; .. नपाधि अळगी हुवे रे, होवे शान्ति नान. ज. ४ खारा जलना पानथी रे कदी न तृप्ति थाय, धुमामा बाचक नरे रे, हाथ कशुं नहि आय. ज. ५ माया ममता योगथी रे, कदी न शान्ति होय, शान्ति वर्ते श्रात्ममां रे निश्चयश्री अवलोय. ज.६ आतमध्याने आतमा रे, शान्तिथी नरपूर, बुद्धिसागर शान्तिमां रे, रहेQ सदा मगरुर, ज.७
अमदावाद,
॥ पद ५७ ॥ कोइ म करशो प्रीत, चतुरनर कोइ न करशो प्रोत प्रीत वसे त्यां नीत, चतुर नर को न करशो प्रीत. प्रीति नव दु:ख मूळ बेरे, प्रोतिनुं फळ शोक; प्रीति करतां प्राणीनेरे. वाधे रोग वियोग, चतुर. १ स्वारथमां अन्धा बनी रे, प्रीत करे नरनार, परपुद्गलनी लालचेरे, वृद्धि करे संसार
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