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88 निकुक सुखीया जगमांसाचा.तस जान बलिहार. निय निज देशे ने तृप्ति, युं वदति जिन वाणी बुद्धिसागर अवसर पाकर, तृप्ति लदो गुणखाणी.ए
अमदावाद.
॥ पद ५६ ॥ ज्ञानी वीरला कोइ जगत्मा, ज्ञानी वीरला को,
वउ विचारी जो-जगत्मा ज्ञानी कोई नाषा ज्ञानथीरे, धरता मन अहंकार, नाषा कारण ज्ञाननुरे, नावे नाषा पार. जगतमां. १ वादविवाद मानतारे, कोश्क साचु ज्ञान; परपरिणति पोष्याश्रकीरे, वाधे नलटुं मान. जग. २ राग द्वेषनो क्षय करीरे, अ आतम नान; पूरण शान्ति जेहथीरे, जागो सत्य ते ज्ञान, ज.३ आतम अनुप्लव ज्ञानथीरे, नासे नवनय फंद: बुद्धिसागर पामतारे, ज्ञानी पूर्णानन्द. जगतमां. ३
अमदावाद.
॥ पद. ५७ ॥ शान्ति सदा सुखदायी, जगत्मा शान्ति सदा सुखदायी, सेवो चित्तमां ध्यायी-जगत्मां-शान्ति. नव जंझाळे नटकतारे, शान्ति होय न लेश;
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