________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्य नाग्यदशा पूरण जस होवे, आतम ध्याने मन लागे; बुद्धिसागर धन्य नरा जग, प्रणमो सन्तो दीलरागे. अ.४
(अमदावाद.) राग प्रत्नातिचाल, ४१ असा स्वरुप विचारो हंसा, गुरुगम शैली धारी रे.. पुद्गल रूपादिकथी न्यारो, निर्मल स्फटिक समानोरे, निज सत्ता त्रिकाले अखएिमत,कबहु रहे नहि गनोरे.१ नेदज्ञान सूर नदये जागी, आतम धंधे लागोरे, स्थिर दृष्टि सत्ता निजध्यायी, पर परिणमता त्यागोरे.२ कर्म बन्ध रागादिक वारी, शक्ति शुरू समारी रे, .. जीलो समता गंगा जल में, पामी ध्रुवकी तारी रे. अं.३ निजगुण रमतो राम नयो जव, आतमराम कदायोरे, बुद्धिसागर शोधो घटमां,निजमां निज परखायोरे. अ,8
(अमदावाद.)
॥ पद ४२ ॥ परमपद परखेतोसुख मळे,अनादि दुःखनी ब्रान्ति टळे शु रुप नळे चेतना, निजधन निजमां मळे, साध्य लदो पातमा था,अकल पण निज कळे. प. १ त्यागी थने त्यागी लेतुं, अवसर आव्यो फळे, बुसिागर जागतां घट, कर्मनुं शुं वळे. प. २
विजापुर.
For Private And Personal Use Only