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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज अजपाजापे सुरता चाली-ए राग. पद ३ए स्वप्ना जेवी उनीयादारी, कदी न तारी थानारी, दृष्टि खोलकर देखो हंसा,मिथ्या सब जगकी यारी. स्व.१ दर्पणमांप्रतिबिम्ब निहाळी, श्वान ब्रान्तिथी बहु नस्यो जुठी माया जुठी काया, चेतन तेमां बहु धस्यो. स्व. २ निज गया कूपजलमां देखी, कुदी कूपे सिंह पम्यो; पर पोतानुं मानी चेतन, चार गतिमा रमवमयो. स्व. ३ जीपोमा रुपानी बुद्धि, मानी मूरख पस्तायो, जममांसुखनी बुद्धिघारी,ज्यां त्यांचेतन बहुधायो.स्व.। कुटुम्ब कबीलो मारो मानी, कीधां कर्मो बहुनारी; अंते तारु थशे न कोइ समज समज मन संसारी.स्व. ५ जन्म्या तेतो जरूर जाशे, अहींथी अंते परवारी, समज समज चेतन मन मेरा,बुद्धिसागर निरधारी. स्व.६ (अमदावाद) ॥ पद ध राग पूर्वनो.॥ अलख अगोचर निनय देशी, सित समोवम तुं नारी, अनुन्नव अमृतन्नोगी हंसा,अकलगति ध्रुवता तारी.अ. १ असंख्य प्रदेशे दृष्टि देकर श्वासोश्वासे घट जागो, स्थिरता समता लीनता पामी,दूरे परपरिणतित्यागो.अ.२ नेदशानथी नावोन्नविका, आतम रत्नत्रयी स्वामी; अन्नेद दृष्टि अंतर लदी यावो शिवपद सुखरामी. अ. ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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