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थनार होय ते थाय जीवमा, शीदने कल्पना करे; बुद्धिसागर आत्मध्याने, वांछित कारज सरे. कयु. १
शान्तिः ३. ॥ वि ॥
॥ पद. २५॥ नहि अलख लख्या कबु जावरे, कोइ अनुन्नवी मनमां नावे, मन वाणी कायाथी न्यारा, निराकार निर्धारा; जाति लिंग वचन नहि जामे, सोहि साहिब दिलप्यारारे
को.१ स्याबाद सत्ताए पुरा, कोइ न वाते अधुरा कायरसे ते रहेवे दूरा, पामे चिद्धन जनजे शूरारे.को. नेद ज्ञान रवि अन्तर प्रगटे, मोह तिमिर सहु विघटे पातम ते परमातम रुपे, श्यळ जंग ज्यु चटकेरे. को.३ सद्गुरु संगे अमृत पामी, रोग शोग सहु वामी; बुद्धिसागर निर्नय खेले, ध्याने सदा निर्नानी रे. को. ४
श्री शान्तिः ३. ॥ वि ॥
॥ पद. २६ ॥ साधु लाइ अलख निरंजन सोऽहं। पन्चनूतथी न्यारो वर्ते, पूगे अन्तर कोऽहं. साधु. १ रुपातीत स्वरुपी परगट, रुपारुप प्रकाशी
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