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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ ॥ पद. २३ ॥ अवधूत अनुभव पद कोइरागी, दृष्टि अन्तर जसजागी. श्र. जल पंकजवत् अन्तर न्यारा, निश सम संसारा, इंस चन्चुवत् जमचेतनकुं, जिन्न भिन्न कर घार्या. अ. ३ पुवगल सुखमें कबहु न राचे, नदयिक नावे जोगी, उदासीनता परिणामे ते, जोगी निजधन योगी. अ. २ कायोपशमिक नाव मतिश्रुत, ज्ञाने ध्यान लगावे; श्रापदि कर्ता आप कर्त्ता, स्थिरताए सुख पावे. प्र. ३ कारक षट् घट अन्तर शोधे, परपरिणतिकुं रोधे; बुद्धिसागर चिन्मय चेतन, परमातम पद बोधे. प्र. 8 श्री शान्तिः ३ ॥ वि ॥ ॥ पद. २४ ॥ थरे जीव शीदने कल्पना करे - ए राग. सुख दुःख जोगवत्रां जीव पके, मां श्रावीने श्रमे, " कर्यु दैव कनक कोटि प्राप्त करवा, कोइक द्वीप सन्चरे; वाणमांहि बेशी जातां, अर्ध पन्थमां मरे. कर्यु. १ एक पिताना पुत्र बेने, जननी साथे जणे, एक निरक्षर मूर्ख रदेवे, ज्ञानी जग एक नणे. क. श् सुम्ब थांबा केरी लेवा, कोइक जाने चमे; आयुष्य अवधि यावी होय तो, पलकमांहि प. कं. ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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