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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ परम् ए ॥ मान मायाना करनारारे-ए राग. जरा जुश्रो अन्तरमां तपासीरे, ज्यां शोनेवे श्रात्म प्रकाशी ज्ञानराजाने क्रियाबेदासीरे, अविनाशी ने एकले विनाशी.ज. शान होने क्रिया बे कटारी, ज्ञान शाश्वत पदवाशी; ज्ञानदिवाकर क्रियापतंगीयुं, दृष्टान्तविश्वविलासी रे. जरा. १ विना प्रातमज्ञान क्रियाए घदेलो, देखी श्रावतदे हांसी. समजा विनशुं करशे बिचारा, गळेदेवेपोताने ते फांसी रे.ज. ज्ञानी गीतारथ शासन धोरी, ज्ञान सकळ सुखराशि; बुद्धिसागर पदज्ञानीनां सेवो,हुँतोज्ञा निवेदन हुंशाबाशीरे. श्री शान्तिः ॥ पे ॥ || श्री आनंदघन पदम् १० ॥ क्यारे मुने मळशे मारो संत सनेही; संत सनेही सुरिजन पाखे, राखे न धीरज देही. क्या. १ जग जन प्रागळ अंतरगतनी, वातमी करीए कही; आनंरघन प्रभु वैद्य वियोगे, किम जीवे मधुमेही. क्या. २ ॥ पदम् ११ ॥ अरे जीव शीदने कल्पना करे - ए राग. अनुभव प्रतमनो जो करे, तदा तुं अजरामर थइ रे; देह देवळमां नंध्या देवने, घमि नहि सुख अरे सुरता घंटे नंघ जागे, जागे देव इःख हरे तदा तुं. १. त्यागे न जल ज्युं मालुं नाइ, तेम गुण निज वरे; For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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