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निज गुणमें सब गुण लखे, न चखे पुदगलनी रेखरे. खीर नोर विवरो करे, ए अनुजव हंस सुपेखरे. प्र.६ निर्विकल्प ध्येय अनुन्नवे, अनुनव अनुजवनी प्रीतरे; अवरन कबहु लखी शके, आनन्दधन प्रीतप्रतीतरे. प्र.७
श्री शान्तिः ३.
॥ श्री शान्तिजिन स्तवनम् ॥ श्रीशान्ति जिन अलख अगोचर, दीनानाथ दयाळ, दिनमणि दीनोधारक दीनपर, करुणा करजो कृपाळु
मोरा स्वामीरे नव पायोधि तारो. १ क्रोध कपटश्री मनहुँ मेलु, अवळु नटके, तुजगुण ध्यान करता साहिब, सटक दश्ने सटके.मो. मोह प्रमादे आयुष्य गाळू, लीधां वृत नवी पाळ, महापणना दरियामां मुली, दीधुं सम्वर तालु. मोरा.३ उनीयादारी दूर न कोधी, पापे काया पोषी, दगा प्रपन्चो निशदिन करतां, बनीयोनारे दोषी.मो.४ साचो साहिब निरखी नयणे, शरण ग्रह्यं सुखकारी. दोषने टाळी पाप पखाळी,थाशुं निजगुण धारी. मो.५ सेवा नक्ति निशदिन करशुं, तुज आएगा शिर धरशं. बुद्धिसागर अवसर पाकर, अजरामर अश् परशुं.मो.६
अ, द, न,
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