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१४७ निर्मल निरखे नयणे प्रातम नूरजो. अन्तरण । सहज समाधि मोटी मनमां मानीए, वळजो एनी वाटे व्हेला वीरजो मगे मेरु पण चित्त चंचलता नवी हुवे। ध्यान दशा एवी वर्तेतो धीरजो. अन्तर० ५ अनेकान्त दृष्टिथी पातम लखी, पूजो ध्यावो गावो श्री नगवानजो नीमी पण अनेक नामो एदनां, पदर्शनमा सडु ध्यावे ध्यानजो. अन्तर ६ सातनयोथी स्वरुप समजो पात्मनुं सापेके पम्दर्शन आत्म समायजो; स्याहाद सत्ताथी पूरण पामीए, नेदनाव झगमो त्यारे पुर थायजो. अन्तर ७ अन्तर स्वामी समज्या विण शुं सेवना, श्रक्ष नक्ति प्रीतिथी परखायजो शब्द सृष्टि विकल्प शम्या निज शुइमां, बुद्धिसागर अन्तर्यामी गायजो. अन्तर-G
साणंद शान्तिः ३.
नधवजी संदेशो कहेजो स्यामने-ए. राग.
॥ पद १९२॥ सहु शक्तिना.स्वामी प्रातम माहरा,
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