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१५६ सदगुरुनी वातो न्यारी रे, विचारी जोजो. सण ५ बुद्धिसागर दीवो, सदगुरु चिरंजीवो. गुरु वचनामृत बीवोरे,
स०६ साणंद
नधवजी संदेशो कहेजो श्यामने-ए राग,
समाधिपद १५१ ॥ अन्तरना अलबेला साहिब रीजशे, त्यारे मारां सघळां कारज सिजो अष्ट सिदि घटमां प्रगटे ने ध्यानश्री, दान गुणोनुं पोताने परसिजो.. अन्तर १ यम नियम आसनने प्राणायामश्री, शरीर शुहि श्राशे चित्त पवित्रजो; पद्मासन सिक्षासन वाळी बेसजो, सुषुम्णान्नेदक प्रासननी रीतजो. अन्तर०२ प्रत्याहारे चित्तनी स्थिरता संपजे, धारणाथी धारो अन्तर देवजो, ध्यानन्द समजीने ध्याने ध्याइए. अन्तर पातम परमातमनी सेवजो. अन्तर० निर्विकल्प समाधि रुपे संपजे, सुखनो दरियो गुणधी जरीयो पूरजो; अलख दशानी अविचल रटना लागतां,
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