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१०४ नावदया देवकोनारे गेरु, आकाश नपमाथी काळा; अनुन्नव दृष्टि मोरलीना नादे, लय लागी लटकालारे. रमजो०३ सात नयोना वाक्योनी मटकी, वेचे महियारण सारी क्षयोपशम ज्ञानवृत्ति आहीरण, आत्मझान दधि धारी रे. रमजो० ४ नाद ज्ञान दृष्टि लकुटीथी नागी, ज्ञान अमृत दही चाख्यु, गिर्वाणीना धारी गिरधारी, शानिए नावधी ए नाख्युरे. रमजो ५ आतमध्याननो रास रमामीने, आनन्द वृत्तियोने आपः राग षादिक मोटा जे राहत, तेहने मुलमांधी कापे रे. रमजो०६ निश्चय विष्णु व्यवहारे कृष्ण, अवतारी जीव पोते; आतम कृष्णने आतम विष्णु बीजे शीदने तुं गोते रे. रमजो०७ अध्यातमथी कृष्ण आतम, औदपिक जलधि निवासी,
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