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निवेदन
अाजे अमे श्रा 'श्री लघु स्तोत्ररत्नाकर प्रथम भाग' नामना ग्रंथने ' श्री अजितसागरसूरि ग्रन्थमाला' ना अढारमा अंक तरीके प्रसिद्ध करी जनताना करकमलमां समर्पित करीए छीए । श्रा ग्रन्थमालाचें कार्य अमारा हस्तक प्राव्यु तेथी त्रण-चार वर्ष पूर्व ज्यारे आचार्यश्री हयात हता त्यारे ा ग्रंथ छपाववाने तेनुं भेटर प्रेस पर मोकलवामां श्राव्युं हतुं, पण अनेक कारणोने लइने ते अटकी पडयुं हतुं। जिनस्तुतिचतुर्विशतिका ' मुद्रित थया बाद भा पुस्तक, मुद्रण मुनिश्री हेमेन्द्रसागरजीनी सूचनानुसार अमारा हाथमा श्राव्युं, अने या पुस्तकनी राह जोनाराभो माटे जो क मोडं थयु के तो पण छेवटे ते कार्य उपरोक्त मुनिश्रीनी कृपाथी पार पड्युं छे।।
अमारी भावना के के अमारा तरफथी बहार पडती मा ग्रंथमालाने जेम बने तेम वधारे सस्ती बनावीए पण अमारी पासे तेवू आर्थिक साधन न होवाने लीधे अमारे तेनी कीम्मत मात्र बार पाना राखी पडी छ भने ते कीम्मत आ पुस्तकना खरीदनार महाशयो जाणी शकशे के तेना अढार फरमाना कद प्रमाणे पडतरथी पण काइक ओछी ज छ।
अाजकाल पूर्वाचार्योए रचितस्तोत्रोना संग्रहरूप अनेक पुस्तक बहार पडी रह्यां छे अने ते भिन्न भिन्न रुचिवाळा वाचकपाठक भक्त जनोने माटे आदरणीय तथा पाठ्य छ । प्रत्येकमां
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