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एक दिन मुनिश्री ने सहज में ही उनसे पूछा 'काशीराम : तुम मात्र पुस्तक ले जाकर पुनः ले आते हो या उसे पढ़ते भी हो ।' काशीराम ने नम्रता पूर्वक कहा 'आप पुस्तक से कोई भी प्रश्न पूछ लीजिए । में पढ़ता हूँ या नहीं, यह स्वयं सिद्ध हो जाएगा।' यह जवाब सुनकर मुनिश्री को बहुत प्रसन्नता हुई । काशीराम की याद शक्तिः इतनी अपूर्व थी कि वे जिस किसी पुस्तक को एक या दो बार पढ़ते वह उन्हें पूरी तरह याद रह जाती ।
जीवन परिवर्तन करनेवाली वह पुस्तक
काशीराम जन्म से ही स्थानकवासी मान्यता के होने के कारण पहले से ही मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थ । कई बार व मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के लोगों के साथ चर्चा में भी उतर जाते थे । मूर्ति को पत्थर कहकर स्वयं के मन का विरोध भी वे कई चार प्रकट करते थे ।
प्रतिदिन की भांति एक दिन काशीराम एक पुस्तक अपने घर लाए । संयोग वश उस दिन मुनिश्री के ध्यान में यह नहीं रहा कि काशीराम कौनसी पुस्तक अपने घर ले गया है । वह पुस्तक मूर्तिपूजा के सन्दर्भ में श्री । पुस्तक में जगह-जगह शास्त्रों के सन्दर्भ, आगमों के अवतरण देकर यह सिद्ध किया गया था कि मूर्तिपूजा शास्त्र सम्मत है । इतना ही नहीं, स्थानकवासी सम्प्रदाय को मान्य एसे ग्रन्थों से भी कई उदाहरण देकर यह प्रमाणित किया गया था, कि मूर्तिपूजा करनी चाहिए ।