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________________ जन्म कागज के फूलों में सौन्दर्य हो सकता है, पर मुगन्ध नहीं हो सकती । उनका सौन्दर्य हमारा दिल बहला सकता है, पर हमें सुगन्ध नहीं दे सकता । पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरगरीश्वरजी म. सा. भी इस मंसार के उपवन में एक फूल थे, पर उनकी अपनी विशेषता थी । उनमें आत्मिक सौन्दर्य भी था और गुणों की सुवास भी । उनके आत्मिक सौन्दर्य और गुणों की सुगन्ध ने हजारों श्रद्धालुओं के जीवन को सुवासित किया, उन्हें महकाया । आचार्य श्री जहां भी गए, उनके गुणों की सुवाग और निर्मल चारित्र ने लोगों को प्रभावित किया । पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. का जन्म वि. सं. १९६०, मार्गशीर्ष वदि ६ दि. १९-१२-१९.१३ शुक्रवार के शुभदिन पंजार प्रान्त के लधियाना जिले में स्थित जगराचा गाँव में हुआ था । आपके पिता का नाम श्रीरामकृष्णदासजी तथा माता का नाम रामरखीदेवी था । आपका नाम काशीराम रखा गया । धर्म से आप स्थानकवासी जन थे । कहा जाता है कि काशीराम की जन्म कुंडली निकालने वाले एक विद्वान ज्योतिषी ने उनके पिता से कहा था कि आपका पुत्र आगे चलकर सम्राट बने, ऐसे उच्च ग्रहयोग उसकी जन्म कुंडली में है । जो कहा था वही हुआ । काशीराम आगे चलकर सम्राट नहीं, बल्कि महान् धर्म सम्राट बने ।
SR No.008597
Book TitleKailashsagarsuriji Jivanyatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1985
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size1 MB
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