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यशोधर चरित्र - अधुरी आशा अर्थात् यशोधर राजा कि आज अपना अट्ठम का पारणा नहीं हुआ। हमारी मृत्यु यदि उपवास में हो जाये तो क्या बुरा है?"
साध्वी स्थिर होकर बोली, 'मुझे मृत्यु का भय नहीं है, परन्तु हमारी मृत्यु इस प्रकार पशु की तरह देवी के सामने बलिदान दिये जाने से उसका दुःख है । परन्तु भाई ! जैसे शुभाशुभ कर्म का हमने उपार्जन किया होगा वैसा होगा। शोक करना निरर्थक है मैं अब शोक नहीं करूंगी। आपने मुझे मार्ग पर लगा कर अच्छा किया।
अभयरूचि अणगार और अभयमती साध्वी को यज्ञ-कुण्ड के समक्ष लाया गया । सामने राजा खड़ा था और दूसरी ओर तलवार, भाला और अन्य खुले शस्त्र लिये देवी के भक्त खड़े थे । साधु तथा साध्वी ने आँखें मूँद कर पंच परमेष्ठि का स्मरण प्रारम्भ किया । इतने में पृथ्वी काँपने लगी । आकाश में भारी आँधी आई और चारों ओर रेत से आकाश छा गया। क्षण भर में तो प्रकृति में ऐसा ताण्डव हुआ कि 'बचाओ बचाओ' की पुकार चारों ओर से होने लगी। किसी मकान की छत उड़ गई, किसी के मकान गिर गये और कुछेक उलट-पुलट हो गये। देवी के मन्दिर में खड़े भक्तों को भी अपने जीवन में सन्देह हुआ कि अव क्या होगा और क्या नहीं होगा ?
राजा तथा देवी के उपासक घबरा गये । राजा मन में सोचने लगा, 'कहो अथवा मत कहो, बलिदान के लिए लाये गये ये स्त्री-पुरुष कोई दैवी - महात्मा है । उनके प्रभाव से ही प्रकृति में यह सब परिवर्तन हुआ है । कैसी सुन्दर रूपवान उनकी देह है ? मेरे अन्तर में जन्म से ही हिंसा का वास है, पर इन्हें देखते ही वह लुप्त हो जाती है और उनके प्रति मेरे मन में प्रेम उमड़ता है। यदि मैंने उन पर अपना हाथ उठाया तो वे तो नहीं मरेंगे, परन्तु मैं एवं मेरे समस्त प्रजाजन इनके कोप से मर जायेंगे ।' राजा ने पूछा, 'महात्मा, आपका नाम क्या है? आप कौन हैं ? मेरा अपराध क्षमा करें । राजसेवक भूल गये । आपका तो सत्कार होना चाहिये । आपको पकड़ के लाकर आपका संहार नहीं किया जाना चाहिये ।'
मुनि ने कहा, 'राजन् ! मेरा नाम आप क्यों पूछते हैं? वध के लिए लाये गये असंख्य प्राणियों से आप थोड़े ही किसी का नाम पूछते हैं? आपको मनुष्य की बलि चढ़ानी है तो अवश्य मेरी बलि दो। मैं तैयार हूँ। जीवन में मेरी कोई अपूर्ण आशा नहीं है अथवा मेरे बिना संसार में कोई कार्य अपूर्ण रहने वाला नहीं है।'
राजा ने कहा, 'महात्मा, मैं आपका वध करना नहीं चाहता । मैं आपको पहचानना चाहता हूँ ।'
'राजन्! समस्त जीवों के समान मैं भी हूँ । वन में घास खाकर जीने वाले, किसी का कदापि नहीं बिगाड़ने वाले दीन पशुओं का वध करने में आपको आपत्ति नहीं हैं तो मेरा वध करने में आपको किस लिए आपत्ति हो ? राजन् ! बलिदान से शान्ति की
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