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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यशोधर चरित्र - अधुरी आशा अर्थात् यशोधर राजा (३६) यशोधर चरित्र - अधुरी आशा अर्थात् यशोधर राजा ८३ (१) अट्ठाई छः हैं - तीन चातुर्मासी की, एक पर्युषण की और दो ओली की। इनमें चैत्र एवं आश्विन की ओली की अट्ठाई शाश्वती अट्ठाई कहलाती हैं । इन अट्ठाइयों में देवता नंदीश्वर द्वीप में जाकर अट्ठाई महोत्सव करते हैं । इस छः अट्ठाइयों में चैत्र एवं आश्विन माह की अट्ठाई के दिनों में पूर्व काल में अनेक स्थानों पर धर्म नहीं जानने वाले राजा पशुओं की बलि देते थे और उससे अपना कल्याण मानते थे। ऐसे राजाओं में मारिदत्त नामक राजा ने ऐसा वलिदान प्रारम्भ किया था, जिसमें पशुओं के साथ बत्तीस लक्षण वाले स्त्री-पुरुषों का भी बलिदान दिया जाता था। एक बार वलिदान के लिये बत्तीस लक्षण वाले स्त्री-पुरुषों के रूप में एक साधुसाध्वी बने भाई-बहन को लाया गया । बलिदान के लिए लाये गये इन मुनि के प्रभाव से प्रकृति के वातावरण में परिवर्तन हुआ। जिसके कारण मारिदत्त राजा उस साधु का जीवन-वृत्तान्त जानने के लिये उत्सुक हुआ । मुनि यशोधर राजा के भव में आटे का मुर्गा बनकर संहार करने से मैंने और उसमें प्रेरक उस भव की मेरी माता ने आठ भवों तक कैसे कष्ट प्राप्त किये उसका वृत्तान्त इतना करूण और हृदयद्रावक है कि उसे सुनकर श्रावक का रोमाञ्चित हो जाना स्वाभाविक है, वही वृत्तान्त इस यशोधर चरित्र में है । (२) राजपुर नगर का राजा था मारिदत्त । वह आखेट, सुरा-पान एवं विलास के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं जानता था । राजा धर्म में केवल अपनी कुल देवी 'चण्डमारी' को पूज्य देवी के रूप में मानता था और वह अनेक जीवों की बलि देने को ही देवी का सच्चा तर्पण मानता था । For Private And Personal Use Only चण्डमारी देवी का राजपुर नगर के दक्षिण में मन्दिर था, जिसे देखते ही देवी एवं देवी के भक्त राजा का स्वरूप स्वतः ही समझ में आ जाता था । मन्दिर का द्वार अनेक मृत पशुओं के सिंगों के तोरण से सुसज्जित था । मन्दिर के गढ़ पर स्थान-स्थान पर
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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