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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सचित्र जैन कथासागर भाग ३० आये और नित्यकर्म में लग गये । 'राजन् ! शुभ समाचार है।' राजसेवक यमक ने नमस्कार कर कहा । 'क्या ?' आश्चर्य चकित होकर बोले । - २ 'राजेश्वर पुरिमताल नामक उपनगर के शकटानन उद्यान में कायोत्सर्ग ध्यानस्थ भगवान श्री ऋषभदेव को आज तीन लोक को बतानेवाला केवलज्ञान प्राप्त हुआ है।' भरत उसे पुरस्कृत करे इतने में तो दूसरा राजसेवक 'समक' दौड़ता हुआ आया और नमस्कार करके बोला, 'देव! आयुध-शाला में सूर्य के समान तेजस्वी हजार आरों युक्त चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है ।' दोनों बधाई साथ सुन कर भरतेश्वर विचार में पड़ गये। 'क्या करें ? पहले चक्र का पूजन करें अथवा भगवान का ?" दूसरे ही क्षण विचार धारा निर्मल बनी और वे विचार करने लगे, 'अरे, मैं कैसा पामर हूँ ? चक्र तो चक्रवर्ती का पद प्रदान करने वाला है और वह तो संसार में अनेक बार प्राप्त होता है परन्तु तीन लोक के तारणहार तीर्थंकर पिता के केवलज्ञान महोत्सव का लाभ थोड़े ही बार-बार प्राप्त होने वाला है?' यमक एवं समक को बधाई देने के लिए पुरस्कृत किया गया और सेवकों को भगवान के दर्शनार्थ जाने के लिए तैयारी करने का आदेश दिया गया । (४) 'माताजी! आप नित्य जिनका हृदय में दुःख करके चिन्तित होती हो उन आपके पुत्र ऋषभदेव को आज केवलज्ञान प्राप्त हुआ है। करोड़ों देवता तथा मानव उनके केवलज्ञान का महोत्सव करने के लिए उमड़ पड़े हैं। माताजी! चलिये आपके पुत्र की ऋद्धि देखने के लिए। हम ऋद्धि का उपभोग कर रहे हैं कि आपके पुत्र तीन लोकों के स्वामित्व का उपभोग कर रहे हैं वह तो देखिये। भरतेश्वर ने मरुदेवा माता को प्रणाम करके कहा । For Private And Personal Use Only मरुदेवा माता को अपने साथ हाथी पर विठा कर भरतेश्वर ने चतुरंगिनी सेना सजा कर समवसरण की ओर प्रयाण किया । इन्द्र-ध्वज, रत्न- ज्योति एवं देवताओं के दल के दल आकाश में से उतरते देख कर भरतेश्वर ने मरुदेवा माता को कहा, 'माताजी देखो, ये देवता 'मैं पहले दर्शन करूँ, मैं पहले दर्शन करूँ' इस स्पर्द्धा से भगवान की ओर दौड़ रहे हैं । माताजी ! सुनो यह देवदुंदुभि की ध्वनि | आपके पुत्र को केवलज्ञान हुआ है उस निमित्त देवता हर्ष से जा रहें हैं । माताजी! देखो तो सही, बाघ भेडिये सब अपना वैर भूल कर ऋषभदेव की देशना श्रवण कर रहे हैं।'
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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