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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सचित्र जैन कथासागर भाग (२७) आरसा भवन में केवलज्ञान अर्थात् चक्रवर्ती भरत - २ (१) अत्यन्त प्राचीन काल का यह प्रसंग है। जब संसार में मुँह माँगी वृष्टि होती थी, दुःख-शोक एवं भय का नामो-निशान नहीं था, किसी में किसी की सम्पत्ति छीन लेने की भावना नहीं थी, सभी लोग सन्तोषी थे । उस तीसरे आरे के अन्त तथा चौथे आरे के प्रारम्भ की यह बात है । जव मनुष्यों की आयु अत्यन्त लम्बी होती थी और मनुष्यो की देह की लम्बाई भी अधिक होती थी । पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को अपना निर्वाह करने के लिए अत्यल्प चिन्ता करती पड़ती थी । उस तरह से उस काल में मानव प्रकृति से रहने के लिए घर माँग लेते, वे भोजन भी कल्प वृक्ष से माँगते और आवश्यकतानुसार अन्य वस्तुएँ भी कल्पवृक्ष उन्हें प्रदान करते थे, परन्तु यह अवसर्पिणी काल है । यह तो घटता काल है । ज्यों ज्यों समय बीतता गया, त्यों त्यों कल्पवृक्ष का प्रभाव घटने लगा। माँगने पर कल्पवृक्ष आहार प्रदान नहीं करने लगे, जिससे मनुष्यों को चिन्ता हुई। उन्होंने स्वयं की जाति में से एक नायक हुए, जिनमें 'नाभि' सातवें थे । For Private And Personal Use Only नाभि कुलकर एवं मरुदेवा का पुत्र हुआ, जिसका नाम ऋषभ था । ये ऋषभ इस चौवीसी के प्रथम तीर्थंकर हुए और उस काल के प्रथम राजा । वे इस जगत् की समस्त व्यवस्था के निर्माता एवं प्रथम त्यागी थे । उन्होंने दो स्त्रियों के साथ विवाह किया एक सुनन्दा और दूसरी सुमंगला । - इस सुनन्दा एवं सुमंगला के साथ भोग भोगते-भोगते ऋषभदेव के एक सौ पुत्र हुए। सुमंगला ने सर्वप्रथम एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया, जिनका नाम भगवान ने भरत और ब्राह्मी रखा । तत्पश्चात् सुनन्दा ने भी एक पुत्र-पुत्री रूपी युगल को जन्म दिया, जिनके नाम बाहुबली और सुन्दरी रखे गये । तत्पश्चात् सुमंगला ने उनचास युगल पुत्रों को अर्थात् अठाणवे पुत्रों को जन्म दिया । ऋषभदेव ने लोगों को विभिन्न कलाओं की शिक्षा दी। राज्य का प्रबन्ध, कार्यविभाजन एवं तदनरूप जाति का प्रबन्ध करके वे प्रथम राजा बने । राज्य के उपभोग में उन्होंने त्रेसठ पूर्व व्यतीत किये । तत्पश्चात् उन्होंने भरत को विनीता का राज्य,
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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