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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ रहेंगे और सुख पूर्वक जीवन-यापन करेंगे।' चन्दन चौंका। वह बोला, 'वहन! मैं विवाहित हूँ। मेरे पत्नी है, पुत्र हैं और मैं परस्त्री को अपनी बहन मानने वाला हूँ, माँ मानने वाला हूँ। माता तू मुझसे दूर हट, मुझे तेरा वैभव नहीं चाहिये और तेरा यौवन भी मेरे काम का नहीं है।' चन्दन घर से बाहर आ गया। रात्रि आदि का तनिक भी विचार न करके वह सीधा नगर छोड़ कर भागा और श्रीपुर नगर के मार्ग पर स्थित एक वृक्ष के नीचे खूटी तान कर सो गया। तनिक समय व्यतीत होने पर उसने गले में बँधी घंटियों की ध्वनि करता एक हाथी और उसके पीछे आते हुए कुछ मनुष्यों को देखा। यह देख ही रहा था कि इतने में हाथी ने आकर सूंड में उठाया हुआ कलश चन्दन के चरणों पर उडेल दिया। पीछे आते हुए मंत्रियों ने 'जय हो, जय हो महाराज चन्दन की' कह कर उसको चारों ओर से घेर लिया और कहा, 'महाराज! हम श्रीपुर नगर के मंत्री हैं । हमारा राजा निःसन्तान मर गया है। राज्य-कर्मचारियों ने निर्णय किया कि हाथी को कलश दे दो, वह जिस महा-पुरुष पर कलश उडेल दे, उसे हम राज्य-सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर देंगे।' __ मंत्री ढोल-नगारों के साथ चन्दन को हाथी पर बिठा कर श्रीपुर नगर में ले गये। वह श्रीपुर का राजा बन गया । अनेक राजाओं ने अपनी राजकुमारियों का राजा चन्दन के साथ विवाह करने का प्रयत्न किया पर उसने विवाह करने से इनकार कर दिया। ___ चन्दन राजा बन गया परन्तु उसके नेत्रों के सामने से मलयागिरि, सायर एवं नीर हटते नहीं थे। वह छुप छुप कर कई बार कहाँ चन्दन, कहाँ मलयागिरि?' शब्दों का उच्चारण करता और उनकी खोज करता रहता था। वह राज्य-संचालन करता था परन्तु उसका हृदय तो मलयागिरि और सायर तथा नीर की चिन्ता से ही घिरा रहता था। (४) इधर नदी के आमने-सामने के तटों पर सायर और नीर खड़े-खड़े रुदन कर रहे थे। वे ओ पिताजी! ओ पिताजी! की आवाज लगाते और कभी सायर नीर को 'ओ नीर! ओ नीर!' कह कर पुकारता तो कभी नीर ‘ओ भाई सायर! ओ भाई सायर!' पुकार-पुकार कर रोता । कुछ समय पश्चात् वहाँ एक सार्थवाह आया । उसने नदी के दोनों तटों पर रोते उन दोनों बालकों को साथ ले लिया, उन्हें साथ रख कर उनका पोषण किया, उन्हें बड़ा किया परन्तु बड़े होने पर दोनों भाइयों को अपने माता-पिता की खोज करने की इच्छा हुई। अतः एक रात्रि में सार्थवाह के नाम पर एक पत्र लिख For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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