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कया कया गच्छो अने कयी कयी ज्ञाती हाल लुप्त यह.
हालमा जे गच्छो विद्यमान छे तेनो गच्छमतप्रबंधनी प्रस्तावनामां पण उल्लेख करवामां आव्यो छे. तेथी ते संबंधीमां विशेष कंई लखी शकाय तेबुं नथी. जैन श्वेताम्बर कोममां चोराशी ज्ञाति हती तेमांथी केटलीक ज्ञाति लुप्त थयेली छे. आखा हिंदुस्तानमां जैनश्वेताम्बरोमां जे जे ज्ञातिओ छे तेनो परिपूर्ण तपास करवाथी कइ कइ ज्ञातिओ हाल विद्यमान छे, तेनो निर्णय थइ शके छे अने कइ कइ ज्ञातिओ नष्ट थई अने कइ कइ ज्ञातिओ जैन धर्ममांथी अन्य धर्ममां गइ तेनो निर्णय थई शके तेम छे. अस्मदीय जैनोनी प्राचीन तथा अर्वाचीन स्थिति नामना पुस्तकमां वणिक्नी चोराशी ज्ञातियोनुं लीष्ट आप्युं छे. तथा अमोए आ पुस्तकमां ज्ञातिओनुं लीष्ट आपेलं छे, तेनुं मनन करवाथी वाचकोने ते बावतोनो निर्णय थई शकशे. जैन श्वेताम्बर कोममां विशा ओसवाल, दशा ओसवाल, विशा श्रीमाली, दशा श्रीमाली, विशा पोरवाड, दशा पोरवाड, विशाश्रीश्रीमाळ, कपोळ, गुर्जर, सोरठीया, लाडुआ श्रीमाळी, नेमा वाणिया, भावसार, ल्हेवा पाटीदार, भोजक, ब्राह्मण, रजपुत, क्षत्रिय, शाळवी, डुंबड, पोंचा वगेरे ज्ञातियो मुंबाइ इल कामां मुख्यतया जैनधर्म पाळे छे. मारवाड, मेवाड, बंगाळ, दक्षिण, सिंध, मध्य प्रांतमां पण घणी ज्ञातिओ जैनधर्म पाले छे पण चोक्कल तपास नहि करवामां आव्याथी परिपूर्ण लख्युं नथी जे जातियो जैनधर्म पाळे छे तेनुं लीष्ट पूर्वे आप्युं छे..
धातुप्रतिमा करवानी कारीगरी.
धातुप्रतिमा करवानी कारीगरी माटे आर्यशिल्पशास्त्रीओ प्रख्यात छे. केटलीक धातुप्रतिमाओनां परघर, कोरणीथी भरपूर होय छे. आर्य शिल्प शास्त्रीओनी अने शिल्प शास्त्रोनुं महत्व रक्षण करवामां जैन
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