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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૧૪ नारक देवो तिर्यंच हुं हुं, मानव सर्वप्रकारी; लोकालोक न स्वयं हुं छु, अस्तिनास्तिता धारी. सन्तो ८ जे जे कहुं ते पण हुँ छु ने, ना कहुं हुं जाणो; कीडी कुंजर हुँ छ समजो, चौदभुवननो राणो....सन्तो. ९ दृश्यादृश्य स्वरूपी हुँ छु, हुं छु सर्वविचारो; खंडनमंडनरूपी हुँ छु, तरनारो हुँ तारो........सन्तो १० पूजकने हुं पोते पूज्यज, कर्मक्रिया हुं जा[; नवनवज्ञेयो पोते हुँ छु, प्रेमी हुं पीछा'........सन्तो. ११ जगत् प्रभु हुं पोते छु ने, सर्वे हुमां समायु; मस्तिनास्तितानयदृष्टिए, सौमांही 'हुं ध्यायु. सन्तो. १२ अल्ला महमद इसा मुसा हूं. बुद्ध व्यास अवतारी; शंकर रामानुज वल्लभ हु, हु प्यारो ने प्यारी....सन्तो. १३ साकार अने हुँ निराकार छु, धर्माधर्मस्वरूपी; . गंगाकाशी सर्वतीर्थ हुँ, मुजथी वात न छुपी....सन्तो. १४ बाइबल वेद कुरान ज हुँ छु, सर्वधर्मना ग्रन्थो सर्वविचारो सर्वाचारो, अनेकनयमतपन्थो........सन्तो. १५ सापेक्षाताए हुं हुं करतो, थयो ज हुंथी न्यारोः हुं हुं भूलतां थइ समाधि, आनन्द उलस्यो अपारो. सन्तो. १६ गंभीर वातो गुरुगम लेइ, सहु हुमांही समावे; सर्वनयोए अनेकान्तथी, हुमां सर्व सुहावे........ सन्तो. १७ For Private And Personal Use Only
SR No.008580
Book TitleIshavasyopanishad Bhavarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1928
Total Pages360
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, & Canon
File Size18 MB
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