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(१०) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य किस पाप के उदय से गूंगा होता है? उत्तर- हे गौतम! छिद्रान्वेषी वन कर जो देव, गुरू की निन्दा करता है
वह मनुष्य गूंगा होता है। (११) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य किस पाप के उदय से बहरा होता है? उत्तर- हे गौतम! जो लुक छिप कर दूसरे की निंदा सुनने में रत रहता
हो और कपट युक्त मीठे मीठे शब्द बोल कर दूसरे के हृदय का भेद पा लेने में प्रयत्नशील हो। बस! इसी पाप के बोझे से वह
मनुष्य बहरा होता है। (१२) प्रश्न- हे भगवन्! जो मनुष्य रात दिन आदि व्याधियों से घिरा
रहता हो वह किस पाप के उदय से? उत्तर- हे गौतम! बड पीपल के फलों तथा गुलरों को हँस हँस कर खाने
से एवं चूहे आदि जानवरो के पकडने के पीजरों एवं फन्दों को बेचने से वह मनुष्य दिन रात किसी न किसी रोग से घिरा ही
रहता है। (१३) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य इतना स्थूल शरीर वाला, जो कि किसी
प्रकार से अपना शारीरिक कार्य भी अपने हाथों से न कर सके,
ऐसा बेडोल शरीर किस पाप से होता है? उत्तर- हे गौतम! अपने सेठ की चोरी करने से तथा अपने आप ही
साहुकार बन दूसरे का धन हड़प कर लेने से मनुष्य बेडील
डोल वाला स्थूल शरीरि होता है। (१४) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य कुष्ट (कोढ़) रोग- वाला किस पाप
कर्म के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! मयूर, सर्प, बिच्छू आदि के मारने से तथा जंगल में
दावाग्नि लगा देने से मनुष्य कोढ़ी होता है।
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