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गौतम भण भो नाथ त, विश्वास आपी छतों; परगाम मुजने मोकली, तुं मुक्ति रमणीने वर्यो;
हे प्रभुजी तारा गुप्त भेदोथी अजाण................ वीर. ।।२।। शिवनगर थयुं शुं साकडु के, हती नहीं मुज योग्यता; जो मुजने कह्य होत तो, कोण तुज ने रोकता; हे प्रभुजी हुं शुं मागत भाग सुजाण.......................वीर. ।।३।।
मम प्रश्नना उत्तर दई, गौतम कही कोण बोलावशे; सार करशे कोण संघनी, शंका बिचारी कयां जशे;
हे पुण्य कथा कही पावन करो मम कान.......... वीर. ।।४।। जिन भाण अस्त थतां तिमिर, मिथ्यात्व सघळे व्यापशे; कुमति कौशिक जागशे वली, चोरी चुगल वधी जशे; हे त्रिगडे बेसी देशना दीयो जिन भाण...................वीर. ।।५।।
मुनि चौद सहस छे ताहरे, वीर माहरे तुं एक छे; रडवडतो मने मुकी गयां, प्रभु क्यां तमारी टेक छे;
प्रभु स्वप्नांतरमां अंतर न धर्यो सुजाण............. वीर. ।।६।। पण हुं आज्ञावाट चाल्यो, न मळे कोई ईण अवसरे, हुं रागवश रखडं निरागी वीर शिवपुर संचरे; हुं वीर वीर कहुं, वीर न धरे कांई ध्यान................वीर. ।।७।।
कोण वीर ने कोण गौतम, नहीं कोई कोईनु कदा; ए राग ग्रंथी छूटतां, वर ज्ञान गौतमने थतां;
हे गौतम नामे सुरतरू मणि सम निधान............वीर. ।।८।। कार्तिक मास अमास राते, अस्त भाव दीपक तणो; करे दीप ज्योत देव, लोक दीवाली जाणे । हे वीरविजयना नर नारी करे गुणगान रे................वीर. ।।९।।
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