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स्तवन विभाग (१) गणधर श्री गौतमस्वामीनुं स्तवन सकल समीहित पूरणो, गुरुगौतम स्वामी । इन्द्रभूति नामे भलो, प्रणमुं शिरनामी ।।
हारे प्रणमुं शिरनामी ।।१।। मगध देशमां उपन्यो, गोबर इति गाम ।
वसुभूति द्विज पृथिवी तणो, नंदन गुण धाम ज्येष्ठा नक्षत्रे जण्यो, सोवनवान देह । वरस पचास घरे वसी, धर्यो वीरशुं नेह त्रीश वरस छद्मस्थनो, पर्याय आराधे।
बारवरस लगे केवली, पछी शिवसुख साधे वीरमोक्ष पहोंत्या पछी, लह्या केवल मुक्ते। राजगृहे ते पामीया, सवि लब्धिनी शक्ते
बाणुं वरस सवि आउखु, थया मास संलेखे । जेहने सिर निज कर दिये, केवल देखे
।।६।। पंचसया मुनिनो धणी, सविश्रुतनो दरियो । ज्ञानविमल गुणथी जेणे, तार्यो निज परियो
(२) श्री गौतम स्वामी विलाप स्तवन वीर वेला आवो रे, गौतम कही बोलावो रे; दरिशण वेला दीजीए होजी, प्रभु तुं निःसनेही; हुं ससनेही अजाण................ ...वीर. ।।१।।
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