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मान मेली मद ठली करी, भगते नाम शीष तो, पंचसयाशुं व्रत लीयो ए, गोयम पहेलो सीस तो. ............. ।।२३।।
बंधव संजम सुणवि करी, अग्निभूइ आवेइ तो,
नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिवोधेइ तो.............. ।।२४ ।। इण अनुक्रमे गणहर रयण, थाप्या वीरे अग्यार तो, तव उपदेशे भुवनगुरु, संजमशुं व्रत बार(धार) तो............. ।।२५।।
बिहुँ उपवासे पारj ए, आपणपे विहरंत तो, गोयम संजम जग सयल, जय जयकार करंत तो......... ।।२६ ।।
वस्तु छंद इंदभूईअ इंदभूईअ चडिय बहुमान, हुंकारो करी संचरिओ, समवसरण पुहतो तुरंत; इह संसा सामि सवे, चरम नाह फेडे फुरंत, बोधिबीज संजाय मने, गोयम भवह-विरत्त; दिक्ख लेइ सिक्खा सहिय, गणहरपय संपत्त..
... ।।२७।। भाषा (ढाल चोथी) आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो, दीठा गोयम सामि, जो नियनयणे अमिय भरो..
.... ।।२८।। सिरि गोयम गणहर, पंचसया मुनि परवरिय,
भूमिय करय विहार, भवियणने पडिबोह करे. ........ ।।२९।। समवसरण मझार, जे जे संसा उपजे ए, ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनिपवरो............ ......... ।।३०।।
जिहां जिहां दीजे दिक्ख, तिहां तिहां केवल उपजे ए, आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम.................. ||३१ ।।
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