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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीरतरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहता; तो अभिमान गोयम जंपे, तिणे अवसरे कोपे तणुं कंपे... ।।१४ ।। मूढलोक अजाण्यो बोले, मर जाणंता इम काई डोले, मूं आगळ को जाण भणीजे, मेरु अवर किम ओपम दीजे?..... ||१५ ।। वस्तु वीर जिणवर, वीर जिणवर, नाण संपन्न, पावापुरी सुरमहीय, पत्तनाह संसार तारण, तिहिं देवेहिं निम्मविय, समवसरण बहु सुखकारण, जिणवर जग उज्जोयकरे, तेजे करी दिनकार, सिंहासणे सामि ठव्यो, हुओ सुजय जयकार.... ..... ।।१६।। __ भाषा (ढाल त्रीजी) तव चढीयो घण मानगजे, इंदभूइ भूदेव तो, हुंकारो करी संचरीओ, कवणसु जिणवर देव तो.. जोजनभूमि समवसरण, पेखवी प्रथमारंभ तो, दहदिसि देखे विबुधवहु, आवंती सुररंभ तो. मणिमय तोरण दंड धज, कोसीसे नव घाट तो, वैर विवर्जित जंतुगण, प्रातिहारज आठ तो..... सुरनर किन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो, चित्ते चमक्किय चिंतवे ए, सेवंता प्रभु पाय तो............ ।।२०।। सहस किरण सम वीर जिण, पेखवी रूप विशाल तो, एह असंभव संभवे ए, साचो ए इंद्रजाल तो... .......... ।।२१।। तव बोलावे त्रिजगगुरु, इंद्रभूई नामेण तो, श्रीमुख संशय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो. ......... ||२२ ।। ..... ।।१७।। ...... ।।१८।। .....।।१९।। ३६ For Private And Personal Use Only
SR No.008568
Book TitleGautam Nam Japo Nishdish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size5 MB
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