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उपाध्यायप्रवर श्री ने अपने ३७ वर्ष के चारित्र पर्याय में १५ जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार, १० छोटे बड़े नूतन मंदिरों में प्रतिष्ठा, छोटे-बड़े १५ से २० पैदल छ'री पालित संघ व ३७ चातुर्मास गुजरात, राजस्थान, वम्बई, कलकत्ता, अजीमगंज, दिल्ली आदि जगहों पर करके जिनशासन की अपूर्व शोभा को बढ़ाया था. इनमें से ज़्यादातर चातुर्मासों में व अंत समय भी पूज्यश्री के लघु-गुरु भ्राता, विनम्र स्वभावी पूज्य मुनि श्री प्रेमसागरजी ने सदा साथ रहकर पूज्य उपाध्यायजी की सुंदर सेवा की थी.
ऐसे साधक पुरुप हमारे सभी के ऊपर अपने आशीर्वाद का प्रवाह वहाएं, जिससे हम शासन की सेवा कर सकें, ऐसी उनसे हमारी प्रार्थना.
ऐसे महापुरुष के चरणों में भक्तिभरी श्रद्धांजलि.
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