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उपाध्यायजी का अंतिम समय जानकर आखिर आसा सुदि १४ के दिन अस्पताल से नारणपुरा स्थित उपाश्रय में लाया गया. जब उनको कहा गया कि अस्पताल से आज आपको उपाश्रय जाने की छुट्टी दे रहे हैं तब यह सुनते ही वे बड़े खुश हो गए और कहने लगे कि आज मुझे देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा के दर्शन-वंदन आदि करने का लाभ मिलेगा. इतना कहते ही उनकी आँखों में से हर्ष के अश्रु आ गए.
अस्पताल से उपाश्रय आ कर परमात्मा देवाधिदेव वासुपूज्य स्वामी भगवान के दर्शन करते-करते उनकी आँखों में अश्रु की धारा बह चली. उनके मन में यही भावना उत्पन्न हुई कि "परमात्मा! मैं कैसा पापी हूँ कि इतने दिनों तक अस्पताल में आपका दर्शन नहीं कर सका".
आखिर वि. सं. २०५५ के कार्तिक कृष्ण ३ (मारवाड़ी), बुधवार के दिन दोपहर १२ बजे संपूर्ण जागृत अवस्था में नवकारमंत्र का स्मरण करते हुए वर्तमान गच्छाधिपति आ. देव श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म. एवं आचार्य देव श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरि म. अपने गुरूदेव आचार्य प्रवर श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नारणपुरा जैन उपाश्रय में समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. पूज्यश्री से उनके अंत समय पूछा गया कि आप जागृत हैं?, तो उन्होंने कहा कि "हाँ मैं जागृत हूँ और नवकारमंत्र गिन रहा हूँ". उस दिन श्रीसंघ में दोनों ही उपाश्रयों में अखंड नवकारमंत्र का जाप हो रहा था. कालधर्म के दिन दोनों ही उपाश्रयों के आसपास केशर के अमी छांटण हुए. ___ऐसे जिनशासन के नभोमण्डल पर एक चमकते हुए सितारे का अस्त हुआ, कहीं अन्यत्र और भी तेज चमकने के लिए!
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