________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवशर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिवोध देने हेतु भेज दिया. क्योंकि भगवान का विरह गौतमस्वामी से सहन नहीं होने वाला था और यही घटना उनके कैवल्य का निमित्त बनने वाली थी. । भगवान के निर्वाण का वृत्तांत जानकर गौतमस्वामी खूब रोए, पत्थर को भी पिघला दे ऐसा विलाप करने लगे. कुछ ही पलों में उनके विचारों में परिवर्तन आया और पश्चात्ताप करने लगे, अहो ! मैं मोहवश हूँ, प्रभु तो वीतरागी है. थोड़े ही समय में वे शुक्ल ध्यानारूढ़ होकर केवलज्ञानी हुए. उस समय उनकी आयु ८० वर्ष की थी. उन्होंने ५० साल की उमर में भगवान से दीक्षा ली थी. केवल ज्ञान के बाद १० वर्ष तक उपदेश द्वारा भव्य जीवों का उद्धार कर, ९२ की आयु पूर्ण कर, अंत समय में राजगृह नगर के समीप वैभारगिरि के ऊपर एक माह का अनशन कर वे महानिर्वाण पद को प्राप्त हुए, सिद्ध, बुद्ध
और मुक्त हुए. कैसा अनुपम चरित्र ! उन्होंने जिस किसी को भी दीक्षा दी वे सब मोक्षपद को प्राप्त हुए. सचमुच वे अनंतलब्धियों के भंडार थे. ___ गौतमस्वामी के नाम मात्र से सिद्धियाँ आविर्भूत होती है. गौतमस्वामी से संवद्ध मंत्र गर्भित अनेक स्तोत्रादि महर्षियों ने रचे है. जैसे गौतमाष्टक, गौतमस्वामी रास, गौतम गणधर स्तोत्र इत्यादि; जो कि इस संग्रह में भी दिए गए है. चतुर्विध संघ बड़ी श्रद्धा और आदर से गुरु गौतम का नाम लेता है. कहा जाता है कि प्रातःकाल उनके रास व स्तोत्र का पाठ करने वाले भव्यों के दुःख दारिद्र्य देखते ही देखते दूर हो जाते है. ___ अंत में हम उन सभी गुरु भगवन्तों के आभारी हैं जिन्होंने कई कृतियों में पाठ शुद्धि करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है.
For Private And Personal Use Only