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चमत्कारिक घटना थी, जो आज भी भक्तों को प्रेरित करती है.
गौतमस्वामी के लिए परम गुरु विशेषण शब्दशः चरितार्थ होता है. जैन इतिहास में संभवतः ऐसा दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है, जिसके शिष्यों की इतनी विशाल संख्या केवलज्ञान को प्राप्त हुई हो. शिष्य की उपलब्धि गुरु के प्रताप का प्रमाण है.
ऐसा प्रतापी गुरु और उनमें स्वयं में इतनी गहरी गुरु भक्ति कि स्वयं के मोक्षमार्ग की बाधक बन जाए. अनोखा उदाहरण है कि गुरु-भक्ति के पाश से वे तभी मुक्त हुए जब गुरु निर्वाण को प्राप्त हो गया. एक ज्ञानदीप की अनन्त यात्रा और दूसरे ज्ञानदीप का उद्भव जैनों को दीपोत्सव की परम्परा दे गया.
संस्कृत-प्राकृत व मारुगुर्जर भाषाओं में गणधर भगवंत श्री गौतमस्वामीजी के विविध विद्वानों द्वारा रचित स्तोत्रों के इस संग्रह को मेरे अंतरङ्ग अन्तेवासी स्वर्गीय उपाध्याय धरणेन्द्रसागरजी ने बड़ी लगन से संकलित किया था. जिसको श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र (कोबा) द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है. इस प्रकाशन से गौतमस्वामीजी के विषय में बहुत सी जानकारी लोगों को मिल सकेगी. उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म. की श्रुतभक्ति की मैं अनुमोदना करता हूँ. उनकी अन्तिम इच्छास्वरूप यह ग्रंथ वाचकों को समर्पित है.
पद्मसागरसूरि
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