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प्रकीर्णक
कविवर श्री सौभाग्यविजयजी गौतमस्वामी के छंद में गौतमस्वामी की महिमा बताते हैं :दुष्ट दूरे टळे स्वजन मेळो मळे, आधि व्याधि ने उपाधि नासे । भूतनां प्रेतना जोर भांजे वली, गौतम नाम जपतां उल्लासे ।।
महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म. सा. ने गणधर भास की रचना में सुधर्मास्वामी तक के पांच गणधरों की स्तवना करते हुए श्री गौतमस्वामी की स्तवना उन्होंने इस प्रकार की है :सुरतरु जाणी सेविलो, बीजा परिहारिया बाउलियारे । ए गुरु थिर सायर समो, बीजा तुच्छ वहई वाउळियारे ।।
आचार्य श्री पार्थचन्द्रसूरिजी ने श्री गौतमस्वामी के लघु रास में गौतमस्वामी की महिमा का इन शब्दों में वर्णन किया है :गौतम नामे छिपे पाप, गौतम नामे टळे संताप। गौतम नामे खपे सवि कर्म, गौतम नामे होय शिवशर्म ।।
कवि श्री शांतिदास के बनाए हुए गौतमस्वामी के रास में गौतमस्वामी की महिमा का वर्णन करती वाणी को पढ़ें :वैरि मित्रज सरीखां थाय, गौतम नामे प्रणमे पाय; राजा माने सहु को नमे, गौतम नाम हृदयमां रमे । जी जी कार सहुको करे, बोल्युं वचन नवि पार्छ फरे; कीर्तिवेळ जग प्रसरे बहु, गौतम नामे छे ए सहु ।।
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