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(५६) चार थोयनी एक स्तुति. प्रभुमहावीरदेवजिनेश्वरम्, सकलतीर्थपति अचलेश्वरम्, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनागमम कुरु हि यक्षिणी संघ सहायताम्.
चार थोयनी एक स्तुति. वीर जिनेश्वर केवली, जेनुं शासन बाजे, तीर्थकर सर्वे नमुं, जेयो जगमां गाजे; जैनधर्म प्रगटावीयो, जेनो आदि न अंत, शासन देवनी सहायथी, दुःख पामे न संत. १
चार थोयनी एकबीजनी स्तुति. महावीर समकित बीजने, कहे केवलज्ञाने, तीर्थकर सर्वे कहे, चंद्र सरखी प्रमाणे; सर्व धर्मनुं बीज बे, जैनधर्म अनादि, सिद्धायिका टाळती, सर्व संघ उपाधि.
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