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(५३)
सिद्धाचल चैत्यवंदन. सिद्धाचल गिरि वंदीए, द्रव्य भावथी बेश; द्रव्य भाव गिरिजाणतां, रहे न मनमां क्लेश. ॥१॥ सात नयोथी जाणीने, विमलाचल ध्यानार; अवश्य मुक्तिपद लहे, शुद्धातम पद सार. ॥२॥ निर्विकल्प स्वभावथी ए, तीर्थज आपो आप; बुद्धिसागर संपजे, रहे न दुविधा ताप. ॥३॥
महावीर स्तोत्रम् ॐ अहे है। महावीर, सर्पविषं हर द्रुतम् । पुष्टरोगविनाशेन, रक्ष रक्ष महा विभो. १ वन्नामजांगुलीमंत्र, जापेन सर्व देहिनाम् ; तक्षकादिमहासर्प-विषं नश्यतु तत्क्षणम् २ ग्रन्थिकज्वर नाशोऽस्तु, भूतबाधां विनाशय; वातपित्तकफोदतान् , सर्व रोगान् क्षयं कुरु ३ जलेस्थले वने युके, सभायां विजयं कुरु; ॐ अंहस्रौ महावीर, वर्धमान नमोऽस्तु ते. ४
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