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( ५२) काल स्वभावने नियति, कर्मने उद्यम जाण; पंच कारणे कार्यनी, सिद्धि कथी प्रमाण. ॥२॥ पुरुषार्थ तेमां कह्यो, कार्य सिद्धि करनार; शुद्धात्मा महावीर जिन, वंदु वार हजार. ॥३॥ महावीर महावीर ध्यावतांए, महावीर आपो आप; बुद्धिसागर वीरनी, साची अंतर छाप. ॥४॥
महावीर चैत्यवंदन. प्रभु महावीर वंदतां, प्रगटयो हर्ष अपार; उत्पत्ति व्यय ध्रुवमय, भाख्यां द्रव्यो सार. ॥१॥ बाहिर अंतर आतमा, परमातम त्रण नेद; जाख्या केवल ज्ञानथी, करी घातीनो बेद. ॥शा हृदय विषे तुजने धरी, करी शुद्ध उपयोग, ज्योति ज्योति मिलावशं, टाळी कर्मना रोग.॥३॥ तुज ध्याने रसिया बनीने, साधीशुं निज काज; बुद्धिसागर वीरनु, पामीशुं साम्राज्य. ॥४॥
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