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(३०) जैन धर्म जगमांही प्रचारो नामर्दा भीति वारो संघोन्नतिनो करो सुधारो श्रका उद्यम धारो, आत्मरूप जैन धर्मने प्यारो धारी मानव नव नहि हारो जैनो माटे देहने धारो तेथी मुक्ति आरो, जैनोना दोष सामुं न जोशो तेथी पाप मलीनता धाशो वंश परंपर उन्नत रहेशो नहिं तो दुःखथी रोशो माटे जागी क्यथी रहेशो संपी स्हाय परस्पर लेशो परस्पर उपकारने वहेशो सहु जिननो संदेशो. संघनी रक्षा माटे जीवो. श्रुत ज्ञान छे जगमां दीवो.
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