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आत्म ज्ञान प्रकाशथी ए, मिथ्या तम पलटाय; बुद्धिसागर आत्ममां, सहु शक्ति प्रगटाय. ३
__अरनाथ स्तुति. कर्म करो पण कर्मथी, रहो निलेप नव्यो, जिन थातां परमार्थना, यातां कर्तव्यो; जैन दशामां कर्मने, करो स्वाधिकारे, अर जिनवर एम भाखता शक्ति प्रगटे छे त्यारे, १
मशिनाथ चैत्यवंदन. मल्ल बनी नवरण विषे, जीत्या रागने द्वेष, मलि प्रभु तेथी थया, टाळ्या सर्वे क्लेश. १ रागद्वेष न जेहने, परमातम ते जाण, देह छतां वैदेही ते, केवली ने भगवान्. २ मदिनाथ प्रनु ध्याइने ए, भाव मल्लता पामी; कर्म करो प्रारब्धयी, बनी अंतर निष्कामी. ३
महिनाथ स्तुति. महिनाथ घट जेहना, सर्व मल्लने जीते, आतम म जे जाणतो, शुद्ध धर्म प्रतीते;
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