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( १८ ) कुंथुनाथ चैत्यवंदन.
शुद्ध स्वभावे शांतिने, पाम्या कुंथु जिनंद, कुंथुनाथ निज आतमा, समजे नहि मतिमन्द. १ मननी गति कुंठित यतां, वैकुंठ मुक्ति पासे; क्रोधादिक दूरे करी, वर्ते हर्षोल्लासे. बाहिर दृष्टि त्यागथी, आतम दृष्टि योगे; कुंथुनाथ घ्यावो सदा, निजना निज उपयोगे. ३ कुंथुनाथनी स्तुति.
कुंथुनाथमय थे ने जन्यो, कुंथुनाथ आराधोजी, यातमरुपे थैने यातम, सिद्धि पदने साधोजी; आसक्तिवण कर्मों करतां, आतम नहीं बंधायजी, करे क्रिया पण क्रिय पोते, उपयोगे प्रभु थायजी. अरनाथ चैत्यवंदन.
राग द्वेषारिहणी, थया अरिहंत जेह; अर जिनेश्वर वंदतां, कर्म रहे नहीं रहे. आतमना उपयोगथी, रागद्वेष न होय; सर्व कार्य करतां कां, कर्म बंध नहीं जोय.
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