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(१४४) शुद्ध रमणता योगे करतो, पामे क्षायिक ऋद्धिरे.
नमि६ सुखसागर कल्लोले चढियो, लही सामर्थ्य पर्यायरे; शुद्ध परिणति-चंद्र प्रकाशे, आनन्द क्यांय न मायरे.
नमिः ७ शुद्ध परिणति-चरण शरणमा, शुद्धोपयोगे रहीशंरे; बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, स्वपर प्रकाशी थशेरे.
नमि०८ २२ नेमिजिनम्तवन. (तुम बहु मंत्री रे साहिबा-ए राग.) नेमिजिनेश्वर ! वन्दना, होशो वार हजार; त्रिकरणयोगेरे सेवना, प्रीति नक्ति उदार. ने० १ सालंबन ध्याने प्रभु ! दीलमां श्रावो सनाथ; उपयोगे तुज धारणा, आवागमन ते नाथ ! ने० ५ नामादिक निक्षेपथी, बालंबन जयकार; निरालंबन कारणे, तुज व्यक्ति सुखकार. ने० ३
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