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(१२४) गुण-पर्यायाधार ! स्मरण रहारं खरं, ध्यान-समाधियोगे अलख निजपद वसं: परमब्रह्म ! जगदीश्वर ! जय जिनराजजी! शरणे आव्यो सेवक राखो लाजजी. वार वार शो ? विनति जाणो सहु का, वार लगाडो न लेश पुःख में बहु सर्वा; बुद्धिसागर सत्य भक्तिथी उद्धारजो, वन्दन वार हजार विनति ए स्वोकारजो.
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१० शीतलनाथस्तवन. प्रीतलडी बंधाणीरे शीतल जिणंदशं, प्रभुविना क्षणमात्र नहि सोहायजो; प्रेमीविना नहि बोजो ते जाणो शके, रूप प्रभुनुं देखी मन हरखायजो. प्रीतलडी. १ अन्तरना उपयोगे प्रभुजी दिल वस्या, भक्ति आधीन प्रनुजी प्राण सनाथजो; अनुलवयोगे रंग मजीउनो लागियो, त्रणभुवनना स्वामी आव्या हाथजो. प्रीतलडो. २
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