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( ११८ )
ज्ञानना मानमां ध्यान छे, ध्यानथी होय समाधिरे;
परम प्रभु एक तानमां, नेटतां जाय उपाधिरे. अनुभव - अमृत स्वादतां, चित्त अन्यत्र न जायरे; चकोर जेम चंद्र तेम राचतुं, परम प्रभुरूपमारे. सुख अनंतनी राशिमां, जीवनमुक्तपद पायरे; बाह्यनां सुख रुचे नहि, निश्चयसुख निजमांरे.
परपरिणतिरंग परिहर, शुद्ध परिणतिमांहि रंगरे; बुद्धिसागर जिनदर्शन, देखवा प्रेम भंगरे.
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