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शान्ति०४
(९२) स्थिरोपयोगे शुद्धरमणता, शान्तिजिनवर-भक्तिरे. कर्म खर्याथी साची शान्ति, चेतनद्रव्यनी प्रगटेरे; शान्ति सेवे पुद्गलथी झट, चेतन-ऋद्धि वलूटेरे. चउनिक्षेपे शान्ति समजी, नाव-शान्ति घट धारोरे; बुद्धिसागर शान्ति लहीने, जल्दी चेतन तारोरे.
शान्ति. ४
शान्ति ५
कुंथुनाथस्तवन.
(राग केदारो.) कुंथुजिनेश्वर करुणानागर, भावदयानंडाररे; चिदानंदमय-चेतनमूर्ति, रुपातीत जयकाररे. कुं०१ त्रण भुवननो कर्त्ता ईश्वर, करता वादी पक्षरे; सृष्टिकर्ता नहि छे ईश्वर, समजावे जिन दक्षरे. कुं० २
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