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॥७॥
॥१०॥
बज्रपात ! हा ! बज्रपात ! दुर्दैव किया क्या तूने । जो सौराष्ट्र सरोवर का सुख हंस हर लिया तूने नहीं नहीं सरवर का जीवन तने सकल जलाया । नर नारी सरसिज गण तुने पलमें सबकु म्हलाया ॥८॥ बुद्धि उदधि अरु विद्यासागर ज्ञान कला गुण आगर । कहाँ मिलेगा अव पृथ्वी पर बल विवेक मति आगर ॥९॥ काव्य कलानिधि सदा बहाते भक्ति सुधा की धारा । हुआ बंद आनंद स्रोत जैनों का प्राण अधारा वेद तथा उपनिषद विज्ञ अलि तत्व ज्ञानरस पाला। छोड़े गये अध्यात्म विपिन तज ग्रंथ सुमन की माला ॥१२॥ हे साहित्य वियति के विधु गुजराती सुवन सपुते । पोंछो अब माता के आँसू हुई बेर बहु रोते महावीर की मंजुल मूरति के अनुपम अनुरागी । मंदिर भी तजि चले अचानक ऐसे हुए विरागी ॥१३॥ साधु शिरोमणि सत्यव्रती साधू समाज के कोकिल । छोड़ गये रोते हमको यों हुए हाय निर्मोहिल ॥१४॥ भारत मां के लाल हाय सौराष्ट्र सुधन सुखकारी । मातृभूमि को छोड़ चले क्यों ऐ स्वदेश व्रतधारी वे आनंदकंद शुभ मूरति योगी परम विरागी । तम पाखंड प्रभाकर मिथ्या वेणु विनाशक आगी ॥१६॥ संशय तरु छेदक त्रिशुलवर नीतिधर्म धुरधारी । प्रज्ञाचक्षु चले दुख दे क्यों नीति अहिंसा धारी ॥१७॥ या तुम गये स्वर्गमें हमको छोड़ समुझकर दोषी। पंचकोष की देह छोड़ या हुप निपट निर्दोषी ॥१८॥ प्रभुने हमको दिया दुःख पर यही प्रार्थना करते । यसो शांति आनंद युक्त तुम अमरलोकमें रहते ॥१९॥
भैयालाल जैन.
H. M. B. म्युनीसीपल कमीश्नर. कटनी-(सी. पी).
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